सहदेवी
सहदेवी एक छोटा सा कोमल पौधा होता है जो एक फुट से साढ़े तीन फुट तक की ऊँचाई का होता है। पौधा भले ही कोमल हो पर तंत्र शास्त्र और आयुर्वेद में ये किसी महारथी से कम नहीं है।
अपने दिव्य गुणों के कारण आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका उल्लेख्य कोई बड़ी बात नहीं है परन्तु इसमें कई दिव्य गुण हैं जिसके कारण इसे देवी पद मिला और इसका नाम सहदेवी पड़ा। विभिन्न तंत्र शास्त्र और यहाँ तक की अथर्ववेद में भी इसका उल्लेख मिलता है।
अंकोल
पूरे भारत में यह पेड बहुत काम देखने को मिलता है सबसे ज्यादा यह पेड अरावली और मध्य प्रदेश की पहाड़ियों में देखने को मिलता है इसकी उचाई पच्चीस फुट से लेकर चालीस फुट तक की होती है इसकी शाखाओं
का रंग कुछ सफेद सा होता है इस पेड की छाल तन और जड़ से विष निवारक औषधि बनायीं जाती हैयदि इसकी जड़ को पानी में घिसकर सर्पदंश व्यक्ति के मुंह में डाल दी जाय तो उसका जहर तुरंत समाप्त हो जाता है इसकी एक और विशेषता यह है कि यदि इसकी जड़ को नीबू के रस के साथ घिसकर वह घोल आधा चम्म्च सवेरे और आधा चम्म्च शाम को भोजन से दो घंटे पूर्व दिया जाए तो मात्र तीन दिनों में ही भयंकर से
भयंकर दमा ठीक हो जाता है दमे को दूर करने मिटाने में इसके सामान और कोई औषधि कारगर नहीं है ।
इसके जड़ की छाल का चूर्ण एक माशा काली मिर्च के साथ लेने से बवासीर खत्म हो जाता है ।
इसके जड़ की छाल ,जायफल ,जावित्री , लौंग -प्रत्येक का पांच पांच रत्ती लेकर ,चूर्ण करके नित्य लिया जाय तो किसी प्रकार का कोढ़ एक सप्ताह में ही समाप्त होने लगता है । अंकोल का तेल तो चमत्कारिक प्रभाव दिखाने में सक्ष्म है इसके तेल की पांच बूंदे शक्कर मिलाकर गर्म दूध में डालकर मात्र तीन दिन तक पिलाने से ही शरीर बलवान बन जाता है ।
अपराजिता
विभिन्न भाषाओ में अपराजिता के नाम
हिंदी -कोयल ,अपराजिता
संस्कृत -विष्णुकांता ,गौकर्णिका,अपराजिता ,गिरिकर्णिका
मराठी -कोकर्णी,सुपली
बंगला -अपराजिता
गुजराती-गर्णीघोली
अंग्रेजी -megrin
लेटिन-ciltoria,ternetia
गुण धर्म and प्रयोग
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वैसे तो गुण धर्म की दृष्टि से स्वेत और नीली दोनों कोयल प्राय: समान ही हैं दोनों शीत वीर्य प्रधान तथा दोनों का स्वाद कडवा होता है दोनों में स्निग्धता हैकिन्तु तिक्त और कषायरस की प्रधानता होने से उनमे लघुता और रुक्षता भी देखी जाती है वैसे नीली अपराजिता की अपेक्षा सफ़ेद अपराजिता विशेष गुणकारी और प्रभावशाली होती है![](https://tse4.mm.bing.net/th?id=OIP.E2a_z4UDxa4C6X4y-tiN7wD1Es&pid=15.1&P=0&w=300&h=300)
यह बहुवर्षीय जीवी बनस्पति होती है यह एक
बेल है जिसमें पीले रंग के फूल लगते हैं इसके फूल का आकार गाय के कानों की तरह होता है इसलिए इसे
गौकर्णी भी कहते हैंजंगल में सामान्य रूप से प्राप्त हो जाती है जिसकी फूलो से बीजों को निकालकर अवलेह बना दिया जाता है तो यह पेचिश को मात्र 3 दिनों में ठीक कर देती हैइसका विशेष गुण है कि यह
शराब की मात्रा ज्यादा लेने से लीवर बढ़ गया हो और लीवर में सूजन आ गई हो तो एक-एक चम्मच 7 दिन लेने से लीवर की सूजन पूरी तरह
समाप्त हो जाती है और उससे भी बड़ी बात यह है कि बढ़ा हुआ लीवर सिकु ड़कर वापिस सही स्थिति में आ जाता है इसके पत्तों को पीसकर मूत्र नली के ऊपर लगाने
से रुका हुआ पेशाब बाहर निकल जाता है यदि मूत्र नली में पथरी के टुकड़े हो तो मात्र 3 घंटे में यह दवा उस पथरी को समाप्त कर देती हैइसकी जड़ को पीसकर फंकी की तरह लेने से नेत्रों की
"अपने गुणों के खजाने को पहचानो "
ज्योति बढ़ जाती है और चाहे कितने ही वर्षों से चश्मा पहना हो वह चश्मा उतर जाता है इसके अलावा इसके बीज यकृत प्लीहा जलोदर और पेट के कीड़े आमाशय में दाह कफ
सूजन स्त्रियों के रोग क्षय आदि में तुरंत और आश्चर्यजनक फायदा पहुंचाता है यदि कानों में दर्द हो और कानों के आसपास की ग्रंथियां सूज गई हो तो इसके पत्तों के रस में सेंधा नमक मिलाकर गरम गरम लेप करने से
यह रोग समाप्त हो जाता है इसकी छाल को दूध में पीसकर शहद मिलाकर पीने से गर्भपात रुक जाता है इसके बीजों को पीसकर लेप करने से अंडकोष की सूजन समाप्त हो जाती है इसके अलावा भी इसके
सैकड़ों काम है जिस पर पूरा एक ग्रंथ लिखा जा सकता है वास्तव में ही अपराजिता दिव्य जड़ी में बूटियों में स्थान पाने योग्य है
![](https://i.ytimg.com/vi/Fvh9wnXUeHQ/maxresdefault.jpg)
अपने दिव्य गुणों के कारण आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका उल्लेख्य कोई बड़ी बात नहीं है परन्तु इसमें कई दिव्य गुण हैं जिसके कारण इसे देवी पद मिला और इसका नाम सहदेवी पड़ा। विभिन्न तंत्र शास्त्र और यहाँ तक की अथर्ववेद में भी इसका उल्लेख मिलता है।
का रंग कुछ सफेद सा होता है इस पेड की छाल तन और जड़ से विष निवारक औषधि बनायीं जाती हैयदि इसकी जड़ को पानी में घिसकर सर्पदंश व्यक्ति के मुंह में डाल दी जाय तो उसका जहर तुरंत समाप्त हो जाता है इसकी एक और विशेषता यह है कि यदि इसकी जड़ को नीबू के रस के साथ घिसकर वह घोल आधा चम्म्च सवेरे और आधा चम्म्च शाम को भोजन से दो घंटे पूर्व दिया जाए तो मात्र तीन दिनों में ही भयंकर से
भयंकर दमा ठीक हो जाता है दमे को दूर करने मिटाने में इसके सामान और कोई औषधि कारगर नहीं है ।
इसके जड़ की छाल का चूर्ण एक माशा काली मिर्च के साथ लेने से बवासीर खत्म हो जाता है ।
इसके जड़ की छाल ,जायफल ,जावित्री , लौंग -प्रत्येक का पांच पांच रत्ती लेकर ,चूर्ण करके नित्य लिया जाय तो किसी प्रकार का कोढ़ एक सप्ताह में ही समाप्त होने लगता है । अंकोल का तेल तो चमत्कारिक प्रभाव दिखाने में सक्ष्म है इसके तेल की पांच बूंदे शक्कर मिलाकर गर्म दूध में डालकर मात्र तीन दिन तक पिलाने से ही शरीर बलवान बन जाता है ।
अपराजिता
हिंदी -कोयल ,अपराजिता
संस्कृत -विष्णुकांता ,गौकर्णिका,अपराजिता ,गिरिकर्णिका
मराठी -कोकर्णी,सुपली
बंगला -अपराजिता
गुजराती-गर्णीघोली
अंग्रेजी -megrin
लेटिन-ciltoria,ternetia
गुण धर्म and प्रयोग
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वैसे तो गुण धर्म की दृष्टि से स्वेत और नीली दोनों कोयल प्राय: समान ही हैं दोनों शीत वीर्य प्रधान तथा दोनों का स्वाद कडवा होता है दोनों में स्निग्धता हैकिन्तु तिक्त और कषायरस की प्रधानता होने से उनमे लघुता और रुक्षता भी देखी जाती है वैसे नीली अपराजिता की अपेक्षा सफ़ेद अपराजिता विशेष गुणकारी और प्रभावशाली होती है
यह बहुवर्षीय जीवी बनस्पति होती है यह एक
बेल है जिसमें पीले रंग के फूल लगते हैं इसके फूल का आकार गाय के कानों की तरह होता है इसलिए इसे
गौकर्णी भी कहते हैंजंगल में सामान्य रूप से प्राप्त हो जाती है जिसकी फूलो से बीजों को निकालकर अवलेह बना दिया जाता है तो यह पेचिश को मात्र 3 दिनों में ठीक कर देती हैइसका विशेष गुण है कि यह
शराब की मात्रा ज्यादा लेने से लीवर बढ़ गया हो और लीवर में सूजन आ गई हो तो एक-एक चम्मच 7 दिन लेने से लीवर की सूजन पूरी तरह
समाप्त हो जाती है और उससे भी बड़ी बात यह है कि बढ़ा हुआ लीवर सिकु ड़कर वापिस सही स्थिति में आ जाता है इसके पत्तों को पीसकर मूत्र नली के ऊपर लगाने
से रुका हुआ पेशाब बाहर निकल जाता है यदि मूत्र नली में पथरी के टुकड़े हो तो मात्र 3 घंटे में यह दवा उस पथरी को समाप्त कर देती हैइसकी जड़ को पीसकर फंकी की तरह लेने से नेत्रों की
"अपने गुणों के खजाने को पहचानो "
ज्योति बढ़ जाती है और चाहे कितने ही वर्षों से चश्मा पहना हो वह चश्मा उतर जाता है इसके अलावा इसके बीज यकृत प्लीहा जलोदर और पेट के कीड़े आमाशय में दाह कफ
सूजन स्त्रियों के रोग क्षय आदि में तुरंत और आश्चर्यजनक फायदा पहुंचाता है यदि कानों में दर्द हो और कानों के आसपास की ग्रंथियां सूज गई हो तो इसके पत्तों के रस में सेंधा नमक मिलाकर गरम गरम लेप करने से
यह रोग समाप्त हो जाता है इसकी छाल को दूध में पीसकर शहद मिलाकर पीने से गर्भपात रुक जाता है इसके बीजों को पीसकर लेप करने से अंडकोष की सूजन समाप्त हो जाती है इसके अलावा भी इसके
सैकड़ों काम है जिस पर पूरा एक ग्रंथ लिखा जा सकता है वास्तव में ही अपराजिता दिव्य जड़ी में बूटियों में स्थान पाने योग्य है
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