- ब्राह्मण - मन्दिर

AddToAny

test banner

Post Top Ad

Responsive Ads Here




श्री गणेशाय नम:
अथ् इन्द्रजाल कथ्यते।
त्रि विंशति कनक विजानि धोउ शेन्द्र यवस्त था।।
गो दन्तन रदन्तश्च कृत्वा शुके रा लोठ येत।।१।।
ललाटे तिलकं कुध्र्या
ॐ ऐं परं क्षोभयं भगवती गंभीरेक्ष स्वाहा

परसगा की जड़ पुष्प नक्षत्र में लीजे उड़द तीली जे
जब की जड़ लीजे पुनः कुवारी कन्या के का तेस् त्रसो द क्षिणा भुज बंधन करें तो सर्वत्र पुज्यमान होय



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages